मोक्ष का तात्त्विक विश्लेषण: वैकुण्ठादि लोक और ब्रह्मज्ञान

editor 09 January 2025
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मोक्ष (मुक्ति) का विचार भारतीय दर्शन के प्रमुख विषयों में से एक है। इसकी परिभाषा और प्रकृति पर विभिन्न मत प्रस्तुत किए गए हैं, लेकिन वैदिक परंपरा और श्रुतियों के आधार पर मोक्ष का सटीक अर्थ समझना अनिवार्य है। कई लोग वैकुण्ठ जैसे प्रसिद्ध लोकों की प्राप्ति को मोक्ष मानते हैं। परंतु, यह धारणा वैद...

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पुराण और श्रुति समन्वय का सिद्धांत

editor 08 January 2025
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सनातन धर्म की परंपरा में श्रुति (वेद) और स्मृति (धर्मशास्त्र, पुराण आदि) का स्थान सर्वोपरि है। श्रुति को अपौरुषेय और सर्वोच्च माना जाता है, जबकि स्मृति और पुराण श्रुति के व्याख्यात्मक ग्रंथ माने जाते हैं। इन दोनों की परस्पर भूमिका और महत्व को समझने के लिए एक सम्यक दृष्टिकोण आवश्यक है। यह लेख प...

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विधि के फलग्रहण के सामन्य नियम

admin 08 January 2025
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किसी भी विधि का फल या तो विधिवाक्य में ही होगा यथा "अग्निहोत्रं जुहूयात् स्वर्गकामः।" जहां फल न दिया हो वहां "विश्वजिन्न्याय" से स्वर्गफल मान लिया जाता है, "यत्र च न फलश्रुतिस्तत्र विश्वजिन्न्याय" इति। जहां विधि में फल न हो किन्तु फलश्रुति हो वहां फलश्रुति में दिया फल अर्थवाद को ध्यान में रख "...

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ब्रह्मविद्या और आश्रमकर्मों की अपेक्षा: एक गहन दृष्टि

admin 08 January 2025
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ब्रह्मसूत्र "सर्वापेक्षा च यज्ञादिश्रुतेरश्ववत्" इस बात की पुष्टि करता है कि ब्रह्मविद्या की उत्पत्ति में स्ववर्णाश्रमविहित कर्मों का महत्त्व है। हालाँकि, ब्रह्मविद्या फल देने में कर्मनिरपेक्ष मानी जाती है, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि आश्रमकर्मों का अनादर या उपेक्षा की जा सकती है। ***आश्रमकर...

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