Verse Display - श्रीमद्भगवद्गीता
श्लोक

अहङ्कारं बलं दर्पं कामं क्रोधं परिग्रहम् । विमुच्य निर्ममः शान्तो ब्रह्मभूयाय कल्पते ॥५३ ॥

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