Verse Display - श्रीमद्भगवद्गीता
श्लोक

कृषिगौरक्ष्यवाणिज्यं वैश्यकर्म स्वभावजम् । परिचर्यात्मकं कर्म शूद्रस्यापि स्वभावजम् ॥४४ ॥

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