Verse Display - श्रीमद्भगवद्गीता
श्लोक

सुखं त्विदानीं त्रिविधं श‍ृणु मे भरतर्षभ । अभ्यासाद्रमते यत्र दुःखान्तं च निगच्छति ॥३६ ॥

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