Verse Display - श्रीमद्भगवद्गीता
श्लोक

अधर्मं धर्ममिति या मन्यते तमसावृता । सर्वार्थान्विपरीतांश्च बुद्धिः सा पार्थ तामसी ॥३२ ॥

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