Verse Display - श्रीमद्भगवद्गीता
श्लोक

अनुबन्धं क्षयं हिंसामनपेक्ष्य च पौरुषम् । मोहादारभ्यते कर्म यत्तत्तामसमुच्यते ॥२५ ॥

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